इतने सभ्य भी मत होना
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कभी #इतने #ऊंचे मत होना
कि #कंधे पर सिर #रखकर कोई रोना चाहें तो उसे #लगाना पड़े #सीढ़ियां
ना #कभी इतने #बुध्दीजीवी कि #मेहनतकशों के #रंग से अलग हो जाए तुम्हारा #रंग
इतने #इज्जतदार भी मत #होना कि मुंह के #बल गिरो तो #आंखें चुराकर उठो
ना इतने #तमीजदार कि बड़े लोगों कि #नाफरमानी ना कर सको कभी
ना कभी लालच इतना ऊंचा लाना कि मां बाप और खुन के रिश्तों से बढ़कर हो जाएं तुम्हें दौलत
इतने सभ्य भी मत होना कि छत पर प्रेम करते #कबूतरों का जोड़ा तुम्हें #अश्लील लगने लगे और #कंकड़ मारकर #उड़ा दो तुम उन्हें #बच्चों के सामने से
ना इतने सुथरे ही कि #मेहनतकशी का मेल छुपाते फिरो तुम #महफ़िल में
इतने #धार्मिक मत होना कि #ईश्वर को बचाने के लिए भुल जाओ तुम इंसानियत
ना कभी इतने #देशभक्त कि घायल को उठाने के लिए झंडा ज़मीन पर ना रख सको
कभी इतने स्थाई मत होना कि
कभी कोई लड़खड़ाए तो अनजाने ही फुट पड़े हंसी
और ना ही कभी इतने भरे पुरे
कि किसी का प्रेम में बिलखना
और भुख से मर जाना लगने लगे गल्प
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